उत्तराखंड – केदारघाटी के लिए 16-17 जून आज ही वो काला दिन था जिसने पूरी केदारघाटी को रोने पर विवश कर दिया था। 16 जून 2013 का वो भयानक मंजर जिसको कोई भूल नही सकता…
16जून की भयानक तस्वीर आज जो कोई भी याद करता है तो आज भी दिल सहम जाता है।चारों तरफ तबाही का मंजर और लाशें ही लाशें बस हर कोई भगवान से यही प्रार्थना करता है कि फिर कभी ऐसा न हो।
केदारनाथ की त्रासदी को 5 साल हो चुके हैं। एक ऐसी भयानक आपदा जिसने हजारों लोगों को उनके अपनो से हमेशा- हमेशा के लिए जुदा कर दिया। जिसमें कई मांओं की कोख सूनी हो गई, कई महिलाओं का सुहाग छिन गया,कई बहिनों ने अपने भाइयों को खो दिया। यादें ऐसी हो चली हैं कि जिसके आसरे आप अतीत को जितना भी याद करेंगे वर्तमान उससे कई ज्यादा आपको भावुक कर देगा। उस प्रलयकारी आपदा में करोडों की सम्पति का नुकसान होने के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण स्थानों का नामोनिशान तक मिट गया। जिसमें रामबाडा की यादें आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। उस समय कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि केदार बाबा की यात्रा फिर से शुरू होगी लेकिन इंसान ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उसकी हिम्मत और मेहनत के आगे कुछ भी असंभव नही है। दो साल के अंदर ही केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य को पूरा करके एक बार फिर भक्तों के लिए केदारनाथ यात्रा पहले की तरह शुरू हो गई। उस भीषण आपदा आने के पीछे आस्था और विज्ञान को मानने वाले लोगों के अपने-अपने मत हैं आस्था को मानने वाले लोग मानते हैं देवभूमि में पाप इतना बढ गया था कि मजबूरन भगवान भोलेनाथ को अपना तीसरा नेत्र खोलना पडा। वहीं दूसरी तरफ विज्ञान को मानने वाले लोगों का मत है प्रकृति के साथ हो रही छेडछाड की वजह से इतनी बडी आपदा को न्यौता मिला। दोनों बातों में दम है वजह जो भी रही हो लेकिन ये वर्तमान मानव के लिए एक सबक है जिस चीज को हम भुगत चुकें हो, वो कल हमारी आने वाली पीढी भी भुगत सकती है इसलिए कोशिश ये करें भगवान भोलेनाथ के दरबार में हमसे कोई पाप न हो,और साथ ही पर्यावरण को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास करें। किसी महान दार्शनिक का कथन है कि विनाश का नाम ही विकास है।
शायद आज उस प्रलयकारी विनाशलीला से ही केदारघाटी का विकास हो रहा है लेकिन इस डिजिटल दौड़ मे पहले जैसा विकास होगा या नहीं ये तो आने वाला वक्त बतायेगा।
-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट