सोशलमीडिया की आड़ में पत्रकारिता का बिखराव आमजन के लिए होगा घातक : राजू चारण

राजस्थान/बाड़मेर- राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर हमारे देश के सभी साथियों को बहुत बहुत बधाइयाँ ….वैसे पत्रकारिता आजकल आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय हो गया है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, निष्पक्षता की खबरें लिखना, आमजन की मूलभूत समस्याओं का समाधान करने के लिए धरातल पर सही जानकारियां एकत्रित करके आमजन तक समाधान करने के साथ ही सरकार तक पहुँचाना, खबरों को सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के रेडिमेड युग में पत्रकारिता के भी रेडीमेड युग में अनेकों माध्यम आ गये हैं जैसे – अखबार, पत्र पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, चैनलों, वेब-पत्रकारिता ओर भी हाईटेक प्रणाली के साधनों से लैस मोबाइल फोन आदि। बदलते वक्त के साथ हमारे बाजारवाद और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई उतार चढ़ाव देखने को मिले हैं।

चूंकि यह एक ऐसा आमजन को समर्पित सेवा का कार्य है जिसमें सामयिक घटनाओ को शब्दों एवं चित्रों के माध्यम से पत्रकार रोज़ अपनी खबरों में दर्ज करते चलते हैं तो इसे एक तरह से आम आवाम के लिए दैनिक इतिहास लेखन कहा जा सकता है। यह कार्य ऊपरी तौर पर लोगों को बहुत आसान लगता है लेकिन इतना आसान होता नहीं है। अपनी पूरी स्वतंत्रता की आजादी के बावजदू भी पत्रकारिता सामाजिक और नैतिक मूल्यो से जुड़ी रहती है। उदाहरण के लिए सांप्रदायिक दंगो का समाचार लिखते समय पत्रकार प्रयास करता है कि उसके समाचार से वहां पर कोई आग न भड़के। वह सच्चाई जानते हुए भी दंगों में मारे गए या घायल लोगो के समुदाय की पहचान नहीं करता है। महिलाओं के साथ उत्पीड़न के मामलो में वह महिलाओं का नाम, गाँव शहर और परिवार से सम्बन्धित या चित्र समाचार पत्रों में प्रकाशित नहीं करता है ताकि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को कोर्ई धक्का न पहुंचे । हमारे सभी आधुनिक पत्रकार मित्रों से अपेक्षा की जाती है कि वे पत्रकारिता की आदर्श आचार संहिता का पालन करें ताकि उनके समाचारो से किसी की और बिना ठौस सबतू के किसी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को आघात ना पहुंचे और न ही समाज मे अराजकता और अशांति फैले ओर सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और राज्य सरकार,जिला प्रशासन की जनहितकारी नीतियो तथा योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह करना ही हमारी पत्रकारिता के साथियों की सच्ची पत्रकारिता हैl

दीपक कुमावत ने बताया कि आजकल की आधुनिक आफसेट मशीनों से पहले साधारण प्रिन्टिग प्रेस से काम चलाया जाता था और रातभर खपना पड़ता था लेकिन आजकल पलक झपकते ही अखबार वगैरह तैयार होकर लोगों को पढ़ने के लिए मिलता है लेकिन एक दशक पहले से आई नयी तकनीक वाली मशीनों से राहत मिली है इसमें कोई शक नहीं पहले हाड़ तौड मेहनत करनी पड़ती थी।

दीपक ने बताया कि विश्व पटल पर पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। इसने लोकतंत्र में यह महत्चपूर्ण स्थान अपने आप हासिल नहीं किया है बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियो के प्रति पत्रकारिता के दायित्वो के महत्व को देखते हुए समाज ने ही यह दर्जा दिया है। लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब पत्रकारिता सामाजिक जिम्मदेारियो के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निर्वाह करे। पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह जिला प्रशासन और समाज के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अदा करें।

समय के साथ पत्रकारिता का मूल्य भी बदलता चला गया। पहले के इतिहास पर नजर ड़ाले तो स्वतंत्रता के पहले की पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति ही एकमात्र लक्ष्य था। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चले आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम मे पत्रकारिता ने अहम और सार्थक भूमिका निभाई थी । उस दौर मे पत्रकारिता ने पूरे भारतवर्ष को एकता के सूत्र मे बांधने के साथ साथ पूरे समाजों को स्वाधीनता की प्राप्ति के एकमात्र लक्ष्य से जोड़े रखा।

राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर कानाराम कुमावत ने बताया कि आजादी के लगभग 70 – 80 साल बाद निश्चित रूप से इसमें बहुत सारे बदलाव आने ही थे। आज हाईटेक प्रणाली के साधनों से लैस चांद पर रहने वाले लोगों तक पहुंच बनाने वाले इंटरनेट और सूचनाओं का अधिकार अधिनियम ने पत्रकारिता को बहु आयामी और अनंत बना दिया है। आज कोर्ई भी जानकारी पलक झपकते ही उपलब्ध कराई जा सकती है। पत्रकारिता वर्तमान समय मे पहले से हजारों गुना सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है। अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता की पहुंच का उपयोग सामाजिक सरोकारों और समाज की भलाई के लिए हो रहा है लेकिन कभी कभार इसका दुरुपयोग भी होने लगता है। कहावत है की गौरियो बलद कालिये बलद री संगत में रंग नी बदल लेवें तो लखण जरूर लेवें लेकिन इसमें सुधार बहुत जरूरी है।

युवा पीढ़ी के कपिल प्रजापत ने बताया कि आर्थिक उदारीकरण का प्रभाव भी पत्रकारिता पर खूब पड़ रहा है। विज्ञापनो से होने वाली अथाह कमाईयो ने पत्रकारिता को एक व्यवसाय की तरह बना दिया है और इसी व्यवसायिक दृष्टिकोण का नतीजा यह हो चला है कि उसका ध्यान सामाजिक जिम्मेदारियों से कहीं-न-कहीं भटक गया है। आज पत्रकारिता मुद्दा के बदले सूचनाधर्मी होता चला गया है। व्हाट्सएप युनिवर्सिटी की पत्रकारिता, हाईटेक प्रणाली से लैस इन्टरनेट स्पीड एवं गांव ग्वाड़ में सोशल मीडिया की व्यापकता के चलते उस तक सार्वजनिक पहुंच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इसको कुछ लोगों द्वारा निजी भड़ास निकालने और आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस माध्यम का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि इस पर अंकुश लगाने की बहस कभी कभार छिड़ जाती है। लोकतंत्र के हित मे यही है कि जहां तक हो सके तो पत्रकारिता को स्वतंत्र और निर्बाध ही रहने दिया जाए। पत्रकारिता के हित में यही है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक जिम्मेदारीयों का निर्वाह के लिए इमानदारी से निर्वहन करते रहे।

– राजस्थान से राजूचारण

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