राजनीतिक इस्लाम पर चर्चा जरूरी, तभी मिटेंगी गलतफहमियां- शहाबुद्दीन

बरेली। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान का समर्थन किया है। हाल ही में गोरखपुर में मुख्यमंत्री ने कहा था कि ब्रिटिश और फ्रांसीसी उपनिवेश की चर्चा तो होती है, लेकिन राजनीतिक इस्लाम की चर्चा नहीं होती, जिसने सनातन आस्था पर सबसे अधिक कुठाराघात किया। मौलाना ने कहा कि राजनीतिक इस्लाम पर चर्चा से गलतफहमियां मिटेंगी। जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने मुख्यमंत्री के बयान पर सहमति जताते हुए कहा कि इस्लाम के राजनीतिक नजरिए पर चर्चा होना जरूरी है, ताकि लोगों के सामने इस्लाम की सियासी सोच और शासन का तरीका स्पष्ट रूप से सामने आ सके। मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा कि इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो इंसानी जिंदगी के हर पहलू पर रोशनी डालता है। यह न सिर्फ रोजमर्रा की जिंदगी जीने का तरीका बताता है बल्कि मुल्क चलाने के लिए भी रहनुमा उसूल पेश करता है। उन्होंने कहा कि आज के दौर के शासकों को इस्लामी शासन के दौर में लिए गए फैसलों से सीखने की जरूरत है। मौलाना शहाबुद्दीन ने यह भी कहा कि मुस्लिम समाज में ऐसे लोग भी हैं जो सियासत को इस्लाम से अलग मानते हैं, जबकि असल में सियासत इस्लाम का अहम हिस्सा है। इस्लाम सियासत को खिदमत-ए-खल्क यानी जनसेवा का बड़ा जरिया मानता है और अच्छी सियासत करने वालों को प्रोत्साहित करता है। सनातन धर्म पर प्रहार की बात सही नहीं मौलाना ने यह भी जोड़ा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सनातन धर्म पर प्रहार की जो बात कही गई है, वह ऐतिहासिक दृष्टि से सही नहीं है। इस्लाम कभी दूसरे धर्मों पर जबरदस्ती नहीं करता, बल्कि बातचीत और समझौते की बात करता है। मौलाना ने कहा कि यह स्वीकार किया कि कुछ मुस्लिम शासकों ने सत्ता बरकरार रखने के लिए युद्ध लड़े, लेकिन ऐसे भी कई शासक हुए जो केवल नाम के मुसलमान थे। उन्होंने कहा कि इस्लामी दौर के शासकों में हजरत उमर फारूक का शासन आदर्श उदाहरण है, जिसकी प्रशंसा अंग्रेज और दूसरे धर्म के इतिहासकारों ने भी की है।।

बरेली से कपिल यादव

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