नई दिल्ली- संसद का मानसून सत्र चल रहा है. इस दौरान ऊपरी सदन राज्यसभा में कांग्रेस ने सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था, जिसे खारिज कर दिय गया है. बता दें कि देश के उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा के सभापति होते हैं. विपक्ष की ओर से उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को हटाने की मांग को लेकर दिए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को ही रिजेक्ट कर दिया गया है. इस तरह अब इसे सदन में पेश नहीं किया जा सकेगा. बता दें कि सभापति के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में बहस होता है, लेकिन नोटिस के खारिज होने के बाद अब ऐसा नहीं हो सकेगा.सूत्रों ने बताया कि राज्यसभा महासचिव पीसी मोदी की ओर से सदन में पेश किए गए अपने फैसले में उपसभापति ने कहा कि महाभियोग नोटिस देश की संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने और मौजूदा उपराष्ट्रपति को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है. कम से कम 60 विपक्षी सदस्यों ने 10 दिसंबर को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को उनके पद से हटाने के नोटिस पर हस्ताक्षर किए थे. इसमें आरोप लगाया गया था कि उन्हें उनपर भरोसा नहीं है और वह पक्षपातपूर्ण हैं.उपसभापति ने सभापति के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर फैसला सुनाते हुए कहा कि कि इस व्यक्तिगत रूप से लक्षित Personally Targeted नोटिस की गंभीरता तथ्यों से रहित है और इसका उद्देश्य प्रचार हासिल करना है. उन्होंने यह भी माना कि यह नोटिस सबसे बड़े लोकतंत्र के उपराष्ट्रपति के उच्च संवैधानिक पद को जानबूझकर अपमानित करने का एक दुस्साहस था. सभापति धनखड़ की ओर से खुद को इससे अलग करने के बाद उपसभापति को नोटिस से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ नैरेटिव बनाने के उद्देश्य से लाया गया था. उन्होंने बताया कि उस प्रस्ताव में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम भी ठीक से नहीं लिखा गया था. बताया जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव में दस्तावेज और वीडियो को जिक्र नहीं किया गया. उपसभापति ने कहा, ‘संसद और उसके सदस्यों की प्रतिष्ठा के लिए चिंताजनक बात ये है कि यह नोटिस मौजूदा उपराष्ट्रपति को बदनाम करने के दावों से भरा हुआ है, जिसमें अगस्त 2022 में उनके पदभार ग्रहण करने के समय की घटनाओं का जिक्र किया गया है. नोटिस में प्रामाणिकता की कमी और बाद में सामने आई घटनाओं से पता चला कि यह राजनीतिक प्रचार को चमकाने का एक प्रयास था.