राजस्थान/बाड़मेर- बाड़मेर जिले में सैकड़ों की संख्या में प्राइवेट स्कूल संचालित हो रहें हैं। विद्यार्थियों को स्कूल और घरों के बीच में लाने व ले जाने के लिए उनके पास सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए स्वयं की बस, टैक्सी एवं अन्य परिवहन के संसाधन हैं। पर स्कूलों के वाहनों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जा रही है। अधिकांश वाहनों में सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन का पालन नहीं किया जा रहा है।
हर साल जिले में प्राइवेट स्कूलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। स्कूल खोलते वक्त पालकों को बच्चों की सुरक्षा के लिए आश्वस्त कर एवं आकर्षक अखबारों में विज्ञापन देकर परिजनों को सिर्फ लुभाया जाता है। इसके चक्कर में फंस कर परिजन अपने नौनिहालों को उनके हवाले कर देते हैं। इसके बाद पालकों का शोषण शुरू हो जाता है। सुरक्षा के मानकों को धत्ता बता कर स्कूल वाहनों में भेड़-बकरियों की तरह नौनिहालों को बैठा कर स्कूलों तक पहुंचाया जाता है।
सेवानिवृत्त इन्जीनियर बी एल शर्मा ने कहा कि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले मासूमों को स्कूल वाहन के अंदर क्या दिक्कत है, इसकी जानकारी न तो पालकों को मिल पाती है और न ही स्कूलों के प्रबंधकों को। जब कोई बच्चा अपने पालक को इसकी शिकायत करता है। तभी इसकी जानकारी स्कूलों के प्रबन्धन को मिल पाती है और फिर शिकायत करने वाले महानुभावों को भी बहला फुसलाने का सिलसिला शुरू।
सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल बसों के संचालन के लिए कई बिंदुओं पर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किया गया है, पर इन दिशा निर्देशों का पालन स्कूल प्रबंधनों द्वारा नहीं किया जाता। कई स्कूल प्रबंधन मारुति वेन, टाटा मैजिक व अन्य वाहन को बिना ट्रांसपोर्ट परमिट के स्कूली बच्चों को लाने-ले जाने के कार्य में लेते हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का उल्लंघन है। व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अधिकांश स्कूल प्रबंधन बच्चों को लाने-ले जाने के लिए स्कूल बसों की सेवाएं तो प्रदान करते हैं, पर वे इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि स्कूल बसों में सुरक्षा की दृष्टि से क्या-क्या उपाय होने चाहिए। बाड़मेर जिले और शहर सहित जिले में दौड़ रहें ऐसे स्कूलों के वाहनों में न तो सुरक्षा की दृष्टि से जाली लगा हुआ है और न ही स्कूल के फोन नंबर दर्ज हैं। विशेषकर टाटा मैजिक व अन्य छोटे वाहनों में सुरक्षा मानकों का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा जाता है।
जिले भर के स्कूलों में छात्र-छात्राओं को स्कूल लाने ले जाने के लिए जो बसों का उपयोग किया जाता है।पूरे जिले के स्कूलों में सैकड़ों स्कूल बसों का परिचालन किया जाता है।लेकिन कुछ ही स्कूल संचालक नियमों का पालन शायद ही कर रहे हैं।बाकी स्कूल संचालक नियमों को ताक में रखकर स्कूल बसों का परिचालन कर रहे हैं।
अभिभावकों से मिली जानकारी के अनुसार जिले में मात्र पाच छ: दर्जन स्कूल बसों का ही विभाग में पंजीयन हुआ है। फिटनेस और चालानों के डर से कुछ बसों को छोड़ कर बाकी बसें बिना पंजीयन के ही स्कूल से छात्र-छात्राओं को लाने जाने का काम अवैध रूप से कर रहे हैं।
सुरक्षा के लिहाज से अभिभावकों को भी सावधानी बरतने की जरूरत है। बस खड़ी होने पर ही बच्चों को बस के अंदर चढ़ाएं,हड़बड़ी में न भेजें। ड्राइवर की हरकतों पर नजर रखें। इस बात का खास ध्यान रखें कि कहीं ड्राइवर नशे में तो नहीं है।बस में कंडक्टर के साथ-साथ स्कूल के जिम्मेदार शिक्षक हैं या नहीं, नहीं होने पर तुरंत प्रबंधन को शिकायत करें। बच्चों के आने और जाने के समय पर ध्यान रखें। यदि समय में बस नहीं पहुंचती है तो प्रबंधन से जरूर संपर्क करें। बस के अंदर बच्चों को जगह मिलती है या नहीं। बच्चे ठीक से जगह में बैठें है या नहीं, बच्चों से जरूर पूछें। बच्चों को बस में भेजने से पहले उन्हें पूरी जानकारी दें कि उन्हें कैसे बैठना है। बस में स्कूल जाने से पहले कुछ सावधानी जरूर बताएं।
अभिभावकों ने कहा कि बाड़मेर जिला परिवहन विभाग के पास शायद उड़नदस्ता टीम नहीं होने के कारण बिना कागज़ी खानापूर्ति पूरी किएँ और परमिट वाले स्कूल बसों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है। कार्रवाई नहीं होने के कारण अब स्कूल संचालक भी बेखौफ होकर बिना परमिट के लापरवाही से स्कूल बसों का संचालन कर रहे हैं। कई स्कूलों में तो छाेटी गाड़ियों का अवैध रूप से उपयोग किया जा रहा है। छोटी गाड़ी चालक भी नियमों को ताक में रख कर 20 से 22 बच्चों को वाहनों में बैठा कर स्कूल लाने और ले जाने का अवैध बूचड़खाने की तरह कार्य कर रहे हैं।
शहर में स्कूलों की बसों से साहब परेशान तो हम भी है लेकिन क्या करे, नाम नहीं छापने की शर्त पर यातायात गुमटी पर तैनात पुलिसकर्मी ने बताया कि समय समय पर उच्च अधिकारियों द्वारा स्कूल बसों का औचक निरीक्षण करने एवं जांच करने का आदेश दिया जाता है। जो भी स्कूल बस सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाईन का पालन नहीं कर रहे हैं उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हैं । स्कूल बसों के साथ ही उनके बस के चालक और परिचालकों का भी पुलिस वेरिफिकेशन करवाया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार स्कूल बस पीले रंग से पेंट होने चाहिए। उसके आगे एवं पीछे ‘ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा हो। सभी खिड़कियों में शीशे लगे होने चाहिए। बस में अग्निशमन यंत्र लगा हो। बस में स्कूल का नाम और फोन नंबर लिखा होना चाहिए। बस के दरवाजे में अच्छी क्वालिटी का ताला लगा हो। सीटों के बीच पर्याप्त जगह हो। बच्चों को बस में चढ़ाने व उतारने के लिए अनुभवी अटैंडेंट रहे। स्कूल बस में कोई अभिभावक या शिक्षक बच्चों के साथ रहे। स्कूल बस के चालक और परिचालक सरकार द्वारा जारी ड्रेस कोड सहित बसों को चलाने के लिए कम से कम 5 साल का अनुभव हो। इसके अलावा रेड लाइट का उल्लंघन आदि यातायात के नियम का उल्लंघन करने पर अगर किसी चालक का साल में दो चालान हो चुका हो, उसे नियुक्त नहीं किया जा सकता। तेज गति, शराब पीकर वाहन चलाने व खतरनाक तरीके से वाहन चलाने के जुर्म में जिसे साल में एक बार चालान किया गया हो, उसे चालक के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता। साथ ही सारे स्कूल बसों का ट्रांसपोर्ट परमिट होना चाहिए।
– राजस्थान से राजूचारण