आमतौर पर बच्चे खेलते कूदते बोरवेल में गिर कर फंस जाया करते हैं लेकिन जब कोई व्यंग्य बोरवेल में गिर जाए तो कुछ अद्भुत तो होना ही है, अद्भुत यह कि वह खुद अपनी भूल से नहीं गिरा बल्कि उसे अपनों ने ही धकेला था। यह देश अद्भुत चीजों , स्थानों और अद्भुत कारनामों की वजह से भी दुनिया में जाना जाता है और अद्भुत घटनाओं से ही टीवी चैनल्स की टीआरपी सिरे चढ़ती है . व्यंग्य का बोरवेल में गिरकर फंसना भी अब तक की सबसे अद्भुत घटना है !
हुआ यूं कि हमारे मोहल्ले में कविता ,कहानी,नाटक,निबंध, अखबारों में छोटी बड़ी लेखनी आदि के संग खेलते हुए व्यंग्य अचानक बोरवेल में गिर गया। चारों तरफ यह खबर किसी बेसिर-पैर के ट्वीटर की तरह से वायरल गई . देखते ही देखते- व्यंग्यकारों की भीड़ दमजी के केबीन पर जमा होने लगी . चर्चा थी कि रोज़-रोज़ हो रहीं दुर्घटनाओं के बावजूद भी बोरवेल पर ढक्कन नहीं लगाए जा रहे। बोरवेल को किसी अनाथ बच्चे की तरह अकेला छोड़ दिया जाता है.
एक लेखक ने ज्ञान उंडेलते हुए कहा, ‘व्यवस्था की कमियों को ढकने के लिए इन्हीं के अपने लोग, ढक्कन उठाकर ले जाते होंगे ! आजकल हर तरफ अपने ‘कर्मों’, पर ढक्कन ढकने का कार्य जो चल रहा है ! उधर, व्यंग्यकारों का शोर बढ़ता देख, शहर कोतवाल को भी सूचित किया गया। वह उस समय विरोधी दल पर थोड़ा बल प्रयोग कर रहे थे , आजकल के हालातों में कोतवालजी ‘दलबल’, के साथ ही मुस्तैद रहते हैं .उनको देखकर व्यंग्यकार समुदाय उन पर लमूट पड़ा . शिकायतों का टोकरा उनके सर पर धरने की जैसे होड़ लग गई।
पूरे मामले को समझकर कोतवाल साहब बोले ,’ हूँ…यह गम्भीर जांच का विषय है ? व्यंग्य बोरवेल में स्वयं की गलती से गिरा या कहानी,कविता ,निबंध, अखबारों में छपी हुई खबरों आदि ने व्यंग्य के बढ़ते हुए बर्चस्व से जलते हुए ; किसी साजिश के तहत व्यंग्य को जानबूझकर धक्का देकर गिरा दिया होगा ? वैसे तो व्यंग्य सदैव हमारा विरोधी रहा है . पर लोकतंत्र का तकाज़ा है कि हम उसकी रक्षा करें . शहर कोतवाल, उचित कार्यवाही का आश्वासन देकर शहर में अमन शांति कायम रखने के लिए निकल गए !’
कुछ देर बाद कोतवाली से एक बड़ी बड़ी मूछों वाला कैमरामेन साज-ओ-सामान के साथ घटना स्थल पर पहुंचा . साथ में व्यंग्य विशेषज्ञ डॉक्टर पंचलाल “प्रहारक” भी मौका-ए-वारदात पर पहुँचे। कैमरा बोरवेल के भीतर लटकाया गया . बाहर टेबल पर कम्प्यूटर और लेपटॉप सहित मॉनिटर रखा गया ताकि डॉक्टर साहब बोरवेल में फंसे व्यंग्य की हालत का आखों देखा जायजा लेकर, आगे की रणनीति तय कर सकें। ऑक्सीज़न सिलेंडर से लम्बी नली भी रस्सी के सहारे नीचे लटकाकर व्यंग्य के मुंह तक पहुंचाई गई.
बोरवेल में फंसे व्यंग्य का रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ . मौके पर खड़े व्यंग्यकारों की नज़रें टेबल पर रखे हुए मॉनिटर पर टिकी हुईं थी. डॉ पंचलाल ने अपनी पारखी नज़रों से देखकर बताया कि व्यंग्य का सिर तो हिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है .सबने राहत की सांस ली. आज के माहौल में विरले लोगों को ही राहत की साँसे लेने का सुअवसर मिलता है !
डॉक्टर ने मॉनिटर पर कुछ धुंधली आकृतियों को देखकर, अपनी डायरी में कुछ लिखा . उनकी राइटिंग समझना भी हर किसी के बूते की बात नहीं थी. सब डॉक्टर के चेहरे को पढ़ने की कोशिशों में लग गए . डॉक्टर ने , हल्के से बुदबुदाते हुए कहा ,’ हूँ , व्यंग्य की भाषा बेहद कमज़ोर दिखाई दे रही है . कथ्य भी दिखाई नहीं पड़ रहा .’ सबकी चिंता बढ़ने लगी थी . मॉनिटर पर फिर कुछ धुंधली आकृतियाँ उभरीं . डॉक्टर ने फिर ध्यान से देखा . और ध्यानमग्न हो गए।
उसने फिर हौले से कहा ,’ व्यंग्य का शिल्प भी कमज़ोर दिखाई पड़ रहा है ? शरीर में केवल फटे हुए कच्छा-बनियान जैसा ही कुछ दिखाई दे रहा है . कोई बिम्ब भी स्पष्ट नहीं है. … कुछ देर बाद उन्होंने सब को आदिनांकित करते हुए बताया ,’ मित्रों, व्यंग्य गर्त की ओर जाता हुआ दिखाई दे रहा है .’
उनका इतना कहना था कि हंगामा शुरू हो गया . इस दरमियान व्यंग्य समूह के एडमिन भी आ धमके . उन्होंने डॉक्टर की कॉलर पकड़ते हुए गुस्से से कहा ,’ काहे बकवास कर रहे हैं . यह व्यंग्य हमारे समूह की आन,बान और शान है . इसे पढ़ते ही पाठक बहुत बहुत बधाइयाँ भाई साहब, लख लख बधाई,वाह वाह,ज़ोरदार जैसे कमेंट की झड़ी लगा देते हैं।
उधर, रेस्क्यू ऑपरेशन तेज़ किया गया. सूरज डूबने से पहले मरणासन्न हालत में व्यंग्य को बोरवेल से जैसे-तैसे निकाल लिया गया . व्यंग्य ने उखड़ती साँसों के बीच सबको हाथ जोड़कर विनम्रता से कहा,’ मित्रो, मैं जीना चाहता हूँ . मेरे विभिन्न अंगों यथा विषय, कलेवर,कथ्य,भाषा सौन्दर्य, पंच,कहन आदि को इतनी ताकत दें कि मैं पूर्ण स्वस्थ होकर दीर्घजीवी हो सकूँ . पूर्ववर्ती बड़े व्यंग्यकारों को पढ़कर समझें कि मैंने कैसे सालों तक विसंगतियों,विद्रूपताओं और आपके शोषण के विरुद्ध आपकी आवाज़ उठाई है।