गत सप्ताह में उत्तर प्रदेश भर में विशेष अभियान के तहत राज्यकर विभाग ने केन्द्रीयकृत होकर प्रत्येक जनपदों में भारी छापेमारी कार्यवाही की। इन छापों का प्रभाव यह हो रहा है प्रदेश के विभिन्न जनपदों के व्यापारी एवं व्यापारिक संगठन कुछ कहने की स्थिति में नहीं है बल्कि हड़कम्प मचा हुआ है। यह समाचार सुनने में आ रहे हैं कि छापेमारी के विरोध के चलते विभिन्न बाजार बंद कर दिये गये हैं। यह भी देखने का मिला कि छापे के दौरान व्यापारिक संगठनों के व्यापारी नेता विभागीय अधिकारियों से उलझते दिखायी दिये। बताया जा रहा है कि इन छापे कार्यवाही की कमान का संचालन मुख्यमंत्री कार्यालय से हो रहा है।
इस प्रकार छापे मारना कोई नयी बात नहीं है लेकिन विचार अवश्य करना होगा कि छापेमारी कार्यावाही से सरकार को समय पर तो राजस्व प्राप्त हो सकता है, लेकिन वास्तव में राजस्व में प्राप्त होगा? और सरकार का काूननी प्रक्रिया में कितना खर्च होगा? फिर इस कार्यवाही के निर्धारण के लिए लम्बे समय तक सुनवाई कार्यवाही से सरकार को भविष्य में कितना राजस्व प्राप्त होगा, यह बिन्दु हमेशा प्रश्न खड़ा करता है। लेकिन हम यह दावे से कह सकते हैं कि सरकार द्वारा इस प्रकार के छापेमारी के कारण जिनता राजस्व वास्तव तो प्राप्त नहीं होगा।
हां, यह जरुर है कि इस प्रकार की छापेमारी से व्यापारियों का उत्पीड़न तो बढ़ेगा ही, जिसके चलते असंतोष बढ़ेगा। हम यह भी कह सकते हैं कि अधिक से अधिक राजस्व संग्रह के लिए छापेमारी कोई सटीक मार्ग नहीं है।
हम हमेशा कहते आ रहे हैं कि सरकार को वर्तमान लागू जीएसटी कानून पर पुर्नविचार करना चाहिए, साथ ही विभागीय कार्यप्रणाली की भी समीक्षा करनी होगी, क्योंकि केवल करचेारी में केवल व्यापारी ही शामिल नहीं होते बल्कि उनको मजबूर भी किया जाता है। जैसे पहली कड़ी ‘पंजीयन प्रक्रिया’ है, जिस पर हमारे द्वारा गत गत माह नवम्बर 22 को केन्द्र व राज्य सरकार को पत्र भेजकर पंजीयन प्रक्रिया पर समीक्षा करने का अनुरोध किया था। सरकार में बैठे उच्चाधिकारियों को यह नहीं मान लेना कि केवल व्यापारीवर्ग की करचोरी में लिप्त है अतः उन पर कार्यवाही करने से राजस्व संग्रह बढ़ जाएगा, यह सोच ही सफलता निहीत नहीं है। यदि वर्ष 2017-18 से 2021-22 के दौरान उच्चाधिकारी इस बिन्दु पर समीक्षा कर लेते कि व्यापारियों की संख्या अपेक्षाकृत रुप से क्यों नहीं बढ़ रही है परिणाम सामने आ जाएंगे। सच्चाई स्वीकार करने की हिम्मत करनी होगी।
दूसरा बिन्दु विचारणीय यह भी दी है कि जब पंजीयन नहीं बढ़ रहे हैं प्रतिमास कर संग्रह कैसे बढ़ेगा? इसके साथ ही प्रश्न यह भी उठता है कि फर्जी आईटीसी के केस क्यों बढ़ते जा रहे हैं। बल्कि हम कह सकते हैं कि फर्जी आईटीसी के केस की संख्या में इसलिए भी वृ(ि दिखायी दे रही है क्योंकि जब जीएसटी लागू हुआ था तब धाराओं व नियमों में आईटीसी क्लेम करने की प्रावधान अलग थे लेकिन धीरे-धीरे किये गये संशोधन के चलते फर्जी आईटीसी के क्लेम के केसों की संख्या में उल्लेखनीय वृ(ि देखी जा सकती है।
और भी कारण है कि अब देश का विशेषकर छोटा व्यापारी पंजीकृत डीलर के रुप में व्यापार करना चाहता क्योंकि उत्पीड़न चरम सीमा पर पहंुचता जा रहा है, प्रश्न खड़ा होता है कि अब पंजीकृत व्यापारी व्यापार करें या जीएसटी में बढ़ती जा रही, नित नई-नई प्रक्रियाओं और औपचारिकताओं को पूरा करो।
इन संशोधनों के क्रम में सबसे गलत बदलाव यह किया गया कि यदि जीएसटीआर-1 में कोई खरीद बिल दिखायी नहीं पड़ता है कि तो खरीदार को उस बिल पर चार्ज किये गये टैक्स का भुगतान करने की जिम्मेदारी बना दी गई। आपको ध्यान होगा कि जब जीएसटी लागू एवं प्रभाव किया गया था तब अधिनियम की धारा-38 में खरीदार को अपनी खरीद को सत्यापित करने का अधिकार था, लेकिन वित्त विधेयक 2022 के माध्यम से यह बदलाव कर दिया और जिम्मेदारी को ओढ़ना खरीदार को सौंप दिया और धारा-38 को संशोधित कर दिया गया।
फिलहाल विभाग मुख्यालयों द्वारा वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 के वादों की स्क्रूटनी अधिनियम की धारा-61 के अन्तर्गत कि गई, जिसमें क्लेम की गई आईटीसी जो कि डीलर्स के पोर्टल पर खरीद दिखायी नहीं पड़ रही है, उसको फर्जी खरीद मानकर देय टैैक्स, ब्याज एवं अर्थदंड की कार्यवाही की जाने लगी है। यहां पर प्रश्न उठता है कि जब खरीदार ने खरीद की है और भुगतान बैंक के माध्यम से किया है तो ऐसी खरीद प्रश्न खड़ा करना क्या विधि सम्मत कहा जा सकता है? विभाग का कहना होता है खरीद को प्रमाणित करने के लिए भुगतान विधि, ई-वे बिल एवं ट्रांसपोर्ट की रसीद आदि प्रस्तुत करें। विभागीय अधिकारी यह भूल रहे हैं ई-वे बिल जीएसटी नियमावली के नियम 138 के अन्तर्गत व्यवस्था मार्च 2019 से लागू हुई, तब कैसे ई-के बिल की मांग की जा सकती है।
इस प्रकार की बहुत सी विसंगतियां सामने आ रही है जिसके आधार पर कह सकते हैं कि कड़ी कार्यवाही के चलते देश के व्यापारियों का शोषण एवं उत्पीड़न तो बढ़ेगा लेकिन अपेक्षाकृत राजस्व नहीं बढ़ पाएगा, केवल उच्चाधिकारी अपनी पीठ ठोक सकते हैं लेकिन यह सही है कि भारत में व्यापारी ऐसी ‘प्राणी’ बन कर रहा गया है जिस पर कोई भी नियम एवं कानून लाद दो अब वह केवल ‘बेचारे की श्रेणी’ में शामिल है, उसको केवल करचोर की दृष्टि से ही देखा जाता है, क्योंकि अपनी पूंजी और मेहनत करते हुए सरकार को टैक्स दे रहा है।
चलो हमने मान लिया कि जीएसटी के अन्तर्गत अपेक्षाकृत पंजीयन कम हो रहे हैं तो उच्चाधिकारियों को देखना होगा कि पंजीयन देने वाले क्या कर रहे हैं दूसरा पंजीयन क्यों नहीं बढ़ रहे हैं? लेकिन इतना अवश्य ही कहा जा सकता है कि देश के व्यापारी, जो टैक्स जमा करते आ रहे हैं उनको कभी प्रोत्साहित नहीं किया और न ही कभी संरक्षण दिया, और तो और कभी भी व्यापारीवर्ग को संगठित क्षेत्र में नहीं लाया गया। केन्द्र सरकार की एम.एस.एम.ई कार्यक्रम में देश के माइक्रो, स्माॅल और मीडियम क्षेत्र के व्यापारियों को संगठित क्षेत्र में लाया गया लेकिन देश के खुदरा व्यापारियों को कोई लाभ अथवा योजना के तहत संगठित करने का प्रयास नहीं किया गया, जबकि देश में खुदरा व्यापारियों की संख्या कम नहीं बल्कि लगभग 8 करोड़ बैठती है, कह सकते है कि भारत के अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, यदि सरकार खुदरा व्यापारियों को संगठित क्षेत्र में लाकर प्रोत्साहन एवं संरक्षण की योजना लागू करती है कि तो आज भी देश के पास राजस्व की कमी नहीं होगी। लेकिन यह सत्य है कि सरकार को सोच का आधार और नीतियों में बदलाव लाना होगा।
’पराग सिंहल’